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                                                                      अग्नाशय  यह U आकार की गुलाबी रंग की ग्रंथि होती है यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है और यह मानव शरीर की सबसे बड़ी मिश्रित ग्रंथि है इस से अग्नाशयी रस निकलता है जिसमे 98% जल तथा शेष लवण और एंजाइम होते है अग्नाशयी रस क्षारीय द्रव है जिसका PH मान 7.5 -8.3 होता है अग्नाशयी की लैगरहेन्स दीपिकाओ से निकलने वाली कोशिकाओं से हार्मोन स्रावित होते है अल्फ़ा कोशिका --- इससे ग्लुकागोन नामक हार्मोन निकलता है बीटा  कोशिका --- इससे इन्सुलिन हार्मोन निकलता है डेल्टा कोशिका ---इससे सोमेटोस्टेटिन हार्मोन निकलता है इन्सुलिन हार्मोन की कमी से डायबिटीज नामक रोग हो जाता है  ...

paachan tantra

                                                                              जंतु ऊतक  उत्पत्ति , सरचना एवं कार्यो वाले कोशिका ओ क के समूह को ऊतक कहते हे ऊतक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग  वियर नामक वैज्ञानिक ने किया था ऊतकों का अध्यन हिस्टोलोजी के अंतर्गत किया हे निम्न प्रकार के होता हे 1 उपकला ऊतक --यह  शरीर के  सुरक्षा कबच का कार्य करता हे यह ऊतक त्वचा आमाशय ,आंत ,पित्ताशय ,                            ह्रदय जीव का निर्माण  करते हे 2 संयोगी ऊतक --यह ऊतक शरीर के अंतर अंगो में चिकनाहट एवं लोच प्रदान करता हे यह विषैले पदार्थो                            भी रक्षा करता हे रक्त और   लशिका   तरल संयोगी हे 3 तंत्रकीय ऊ...

CHORDATA

कशेरुकी (कोर्डेटा ) --- इसके अंतर्गत ऐसे जन्तुओ को रखा जाता है।  जिनमे कशेरुक दंड पाया जाता है।  कोर्डेटा के अंतर्गत आने वाले जन्तुओ में बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।  इनमे पश्चगुदा पुच्छ (पूछ ) पायी जाती है इनमे हृदय आवरण द्वारा ढका  रहता है।  इनमे अन्तः कंकाल पाया जाता है।  इनको तीन संघो में बांटा  गया है।   [1]यूरोकॉर्डेटा -   यह समुद्र में पाए जाते हे इनका ह्रदय  नलिकार होता है।                                               उदा. एपेंडिकुलेरिया, हार्डमैनिया [2]सिफेलोसोर्डेटा - इस संघ के जंतु समुद्र में अकेले पाए जाते हे इनमे हृदय नहीं पाया जाता है।                          यह मछलियों के आकार के  होते हे     ...

NON-CHORDATA

जन्तु जगत ---  जंतुजगत के अंतर्गत बहुकोशिकीय, यूकेरियोटिक  कोशिका वाले जीव आते है।  इनमे क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है यह विषमपोषी होते है।  इनमें  कोशिका भित्ति का अभाव होता है यह भोजन को निगल कर खाते हैइनमे भोजन ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहता है।  जंतु  जल , थल , वायु तीनो जगह पाए जाते है।  जन्तुओ को कशेरुक दंड की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर दो उपजागतो में बांटा गया है।  (1) कशेरुकी (कोर्डेटा )  (2) अकशेरुकी ( नॉन - कोर्डेटा ) अकशेरुकी ( नॉन - कोर्डेटा ) --- इस संघ में ऐसे जन्तुओ को रखा गया है जिनके जीवन काल में कशेरुक दंड नहीं पाया जाता है इसके अंतर्गत आने वाले जीवो को 10 संघो में बांटा गया है। (1)  पोरीफेरा -- इस संघ के अंतर्गत असंख्य छिद्र वाले जंतु आते है।  जिन्हे स्पंज कहते है।  यह जल में पाए जाते है। उदा. -- स्पोंजिला , साइकेन , युस्पंजिला  , युलेक्टेला , ओस्केरेला  आदि। (2)  प्रोटोजोआ --  इसका हम प्रॉटिस्टा जगत में अध्ययन कर चुके है।  उदा. -- अमीबा , युग्लीना  ...

PADAP JAGAT NOTES BY SHAILENDRA SIR

पादप जगत --- पादप जगत के अंर्तगत स्वंयपोषी जीव आते है।  ये भूमि एवं जल में पाए जाते है।  यह मुख्यतः 5 प्रकार के होते है- (1.) ब्रायोफाइटा   (2.) टेरीडोफाइट  (3.) शैवाल  (4.) आवृतबीजी पौधे   (5.) अनावृतबीजी पौधे ब्रायोफाइटा --- यह नम एवं छायादार स्थानों पर उगते है यह चट्टानों , दीवारों आदि स्थानों पर पाए जाते है। इन्हे  पादप जगत का उभयचर कहा जाता है इनमे संवहनीय ऊतक नहीं पाए जाते है। उदाहरण - रिक्सिया , मारकेंसिया , एंथोसेरोस , स्फेगनम टेरीडोफाइट -- यह भी नम एवं छायादार भूमि पर उगते है इनमे संवहनीय ऊतक पाए जाते है। उदहारण - मार्शिलिया , लाइकोपोडियम , रायनिया , सिलेजिनेला शैवाल ---  ;शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी कहा जाता है।  शैवाल विज्ञानं के पिता F. E. फ्रिश्च को कहा जाता है आधुनिक फाइकोलॉजी के पिता M.D.P. अायंगर को कहा जाता है।  शैवाल जलीय पादप है।  यह स्वस्छ एवं समुंद्री दोनों प्रकार के जल में  पाए जाते है।  यह सुकायत (थेलेकोईड ) होते है।  इनमे भोजन स्टार्च के रूप में एकत्रित रहता है।  शैवालों की...

FUNGUS(KAVAK) NOTES BY SHAILENDRA SIR

कवक जगत ----- सभी कवक पर्णहरित विहीन होते है।  यह अपना भोजन स्वंय नहीं बनाते है। बल्कि यह विविध पोषी होते है। यह सवंहन ऊतक रहित होते है।  इसमें भोजन ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहता है।  कवको की कोशिका भित्ति काइटिन  की बनी होती है।  कवक संसार में उन सभी जगह पाए जाते है जंहा जीवित या मृत कार्बनिक पदार्थ पाए जाते है। जैसे - रोटी , अचार   , जेम , जेली  आदि में पाए जाते है। म्यूकस और राइजोपस ऐसे कवक  है। जिसमे भोजन प्रविष्ट होते से पहले ही पच जाता है।  गोबर पर उगने बाले कवक को कोप्रोफिलस कवक कहा जाता है।  कवक पोषण के आधार पर तीन प्रकार के होते है।-           1. मृतोपजीवी कवक  2. परजीवी कवक  3. सहजीवी कवक  मृतोपजीवी कवक -- इस प्रकार के कवक सड़े -गले पदार्थो से अपना भोजन प्राप्त करते है।                                जैसे - र...

BIOLOGY PROTISTA JAGAT BY SHAILENDRA SIR

प्रोटिस्टा जगत ---- प्रोटिस्टा  शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग E. H. हेकिल ने किया था।  प्रोटिस्टा  जगत के अंर्तगत आने वाले जीव  जल ,गीली मिटटी , साड़ी -गली कार्बनिक वस्तुओ में पाए जाते है। जैसे --- अमीबा , पैरामीशियम , युग्लीना अमीबा में व्दिखंडन विधि द्वारा प्रजनन होता है।  प्रॉटिस्टा जगत के सभी जीव  एक कोशिकीय , यूकैरियोटिक  कोशिका वाले होते है।  प्रॉटिस्टा जगत को वर्गीकरण का कूड़ादान कहा जाता है।  डायटम को स्वर्ण शैवाल कहा जाता है।  मनुष्य की RBC में प्लाज्मोडियम नामक परजीवी पाया जाता है।  परजीवी द्वारा होने वाले मानव रोग ----       रोग                                                              परजीवी           मलेरिया                     -      ...

CLASSIFICATION BIOLOGY NOTES BY. SHAILENDRA SIR

वर्गीकरण    वर्गीकरण  के अंर्तगत जीवो को पहचानना ,नामकरण करना ,उन्हें जगतो में विभाजित किया जाता है।  वर्गिकी का पिता केरोलस लीनियस को कहा जाता है  व्दिजगत वर्गीकरण केरोलस लीनियस ने दिया था।  पादप जगत ,  2. जंतु जगत  पांच जगत वर्गीकरण R . H . व्हिटेकर ने दिया जो इस प्रकार है            1. मोनेरा जगत 2. प्रोटिस्टा जगत 3. कवक जगत 4. पादप जगत  5. जंतु जगत   वर्गिकी का पदानुक्रम इस प्रकार है , जगत >संघ >वर्ग >गण >कुल >वंश >जाति   मोनेरा -- मोनेरा जगत के अंर्तगत जीवाणुओं का अध्ययन किया जाता है सर्वप्रथम 1683 में हॉलेंड  के वैज्ञानिक एंटोनी वान ल्यूवेनहोक ने अपने अनाये गए सूक्ष्मदर्शी से दांत की खुरचन में जीवाणुओं को देखा। और उन्हें सूक्ष्म जिव नाम दिया।     एहरेन वर्ग नामक वैज्ञानिक ने 1829 में जीवाणु नाम दिया जीवाणु विज्ञान के पिता ल्यूवेनहॉक को कहाजाता है।  जीवाणु सर्वव्यापी ,  एक कोशिकीय , प्रोकैरियोटिक जीव होते है...

BIOLOGY NOTES BY- SHAILENDRA SIR

कोशिका  विभाजन  कोशिका विभाजन द्वारा कोशिकाऐं गुणन या अपनी ही जैसी अन्य कोशिकाओं का निर्माण करती है ,जो जीवों बृद्धि ,विकास एवं निरंतरता को बनाए रखती है।  कोशिकाऐं विभाजित होकर नई कोशिका बनाती है यह रुडोल्फ बिरचोव का कथन है।  विभाजित हो रही कोशिकाओं को सर्वप्रथम फ्लैमिंग नामक वैज्ञानिक ने ट्राईट्यूरस मस्कुलोसा सरीसृप में देखा।  कोशिका विभाजन 3 प्रकार का होता है। 1   समसूत्री अथवा कायिक कोशिका विभाजन अथवा माइटोसिस  2    अर्द्ध  सूत्री अथवा न्यूनकारी कोशिका विभाजन (MEOSIS ) 3    असूत्री अथवा AMIOTOSIS 1.  समसूत्री विभाजन में मातृ कोशिका का विभाजन होने पर दो कोशिकाऐं  बनती है ,यह कायिक या दैहिक कोशिकाओं में होता है     यह दो चरणों  में होता है 1 केन्द्रक विभाजन -A . इन्टरफ़ेज B . प्रोफेज C . मेटाफेज D .एनाफेज E टीलोफेज                                      2 कोशिकाद्रव्य विभाजन  ...

Current 7 August

हाल ही में 16 देशो के क्षेत्रीय व्यापक , आर्थिक साझेदारी में शामिल होने के लिए भारत एक बार फिर से बिचार कर रहा है।  क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी का विरुद्ध कई उधोग एंव मंत्रालय द्वारा किया गया। क्योकि इस सनझौते के द्वारा भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है।  हाल ही में भारत में HIV मामलो की संख्या लगातार गिराबट आई है।  लेकिन स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण के अनुसार मेघालय , मिजोरम तथा त्रिपुरा HIV के नए होटस्पोट के रूप में उभरे है।  HIV के  उपचार में ART थेरेपी की जाती है।  हाल ही में अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबन्ध लगा दिये है।  अमेरिका का मानना है कि आर्थिक दबाव के कारण ईरान नये समझौते के लिए तैयार हो जायेगा।  और अपनी हानिकारक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा देगा।  अमेरिका ने यह चेतावनी दी की कोई कंपनी या देश इन प्रतिबंधों का उल्लघन करेगा तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ेगा  हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति ने राज्य सभा में पेस की गई एक रिपोर्ट  कहा कि RBI द्वारा ब्यापार ऋणों  के लिए जारी किये जाने वाले LO...