पादप जगत --- पादप जगत के अंर्तगत स्वंयपोषी जीव आते है। ये भूमि एवं जल में पाए जाते है। यह मुख्यतः 5 प्रकार के होते है-
(1.) ब्रायोफाइटा (2.) टेरीडोफाइट (3.) शैवाल (4.) आवृतबीजी पौधे (5.) अनावृतबीजी पौधे
ब्रायोफाइटा --- यह नम एवं छायादार स्थानों पर उगते है यह चट्टानों , दीवारों आदि स्थानों पर पाए जाते है। इन्हे पादप जगत का उभयचर कहा जाता है इनमे संवहनीय ऊतक नहीं पाए जाते है।
उदाहरण - रिक्सिया , मारकेंसिया , एंथोसेरोस , स्फेगनम
टेरीडोफाइट -- यह भी नम एवं छायादार भूमि पर उगते है इनमे संवहनीय ऊतक पाए जाते है।
उदहारण - मार्शिलिया , लाइकोपोडियम , रायनिया , सिलेजिनेला
शैवाल --- ;शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी कहा जाता है। शैवाल विज्ञानं के पिता F. E. फ्रिश्च को कहा जाता है आधुनिक फाइकोलॉजी के पिता M.D.P. अायंगर को कहा जाता है। शैवाल जलीय पादप है। यह स्वस्छ एवं समुंद्री दोनों प्रकार के जल में पाए जाते है। यह सुकायत (थेलेकोईड ) होते है। इनमे भोजन स्टार्च के रूप में एकत्रित रहता है। शैवालों की कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बानी होती है। इनमे संवहनीय ऊतक नहीं पाए जाते है यह निम्न रंगो के होते है। लाल शैवाल , भूरा शैवाल , हरा शैवाल होते है क्योकि इनमे निम्न लिखित वर्णक पाए जाते है।
जैसे - स्पाइरोगाइरा , क्लोरेला , सारगासम , वॉलवॉक्स आदि
(1.) ब्रायोफाइटा (2.) टेरीडोफाइट (3.) शैवाल (4.) आवृतबीजी पौधे (5.) अनावृतबीजी पौधे
ब्रायोफाइटा --- यह नम एवं छायादार स्थानों पर उगते है यह चट्टानों , दीवारों आदि स्थानों पर पाए जाते है। इन्हे पादप जगत का उभयचर कहा जाता है इनमे संवहनीय ऊतक नहीं पाए जाते है।
उदाहरण - रिक्सिया , मारकेंसिया , एंथोसेरोस , स्फेगनम
टेरीडोफाइट -- यह भी नम एवं छायादार भूमि पर उगते है इनमे संवहनीय ऊतक पाए जाते है।
उदहारण - मार्शिलिया , लाइकोपोडियम , रायनिया , सिलेजिनेला
शैवाल --- ;शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी कहा जाता है। शैवाल विज्ञानं के पिता F. E. फ्रिश्च को कहा जाता है आधुनिक फाइकोलॉजी के पिता M.D.P. अायंगर को कहा जाता है। शैवाल जलीय पादप है। यह स्वस्छ एवं समुंद्री दोनों प्रकार के जल में पाए जाते है। यह सुकायत (थेलेकोईड ) होते है। इनमे भोजन स्टार्च के रूप में एकत्रित रहता है। शैवालों की कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बानी होती है। इनमे संवहनीय ऊतक नहीं पाए जाते है यह निम्न रंगो के होते है। लाल शैवाल , भूरा शैवाल , हरा शैवाल होते है क्योकि इनमे निम्न लिखित वर्णक पाए जाते है।
जैसे - स्पाइरोगाइरा , क्लोरेला , सारगासम , वॉलवॉक्स आदि
- भोजन के रूप में शैवालों का उपयोग किया जाता है जैसे - पोर फायरा , अम्बलक़स
- कृषि के रूप में शैवालों का उपयोग किया जाता है जैसे - कारा , नाइट्रेला , नीलहरित शैवाल का उपयोग भूमि को उपजाऊ बनाने में किया जाता है।
- एनाबिना , नॉस्टॉक नामक शैवाल नाइट्रोजन स्तरीकरण में सहायक है।
- एगार-एगार , लेमीनेरिया नामक शैवाल का उपयोग मलहम बनाने में किया जाता है
- सारगासम नामक शैवाल का उपयोग कृत्रिम ऊन बनाने में किया जाता है
- क्लोरेला नामक शैवाल को अंतरिक्ष यात्री अपने साथ ले जाते है क्योकि उससे प्रोटीन युक्त भोजन , जल , ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है।
- लेमिनेरिया , फ्यूकस नामक शैवाल का उपयोग आयोडीन , ब्रोमीन , एसीटोन बनाने में किया जाता है।
- चट्टानों पर उगने वाले शैवाल को लिथोफाइट्स कहते है।
- बर्फ पर उगने वाले शैवाल को क्रफ्टोफाइट्स कहते है।
- सबसे छोटा गुणसूत्र शैवाल का होता है।
- माइकोसिस्टिस। ऑस्केलेरिया हानिकारक शैवाल होते है।
आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म )--- आवृतबीजी पौधो के अंर्तगत पुष्पधारण करने वाले पादप आते है। ऐसे पौधो में बीजो का विकाश फल के अंदर होता है
जैसे - आम , नींबू ,गेहूँ , टमाटर , सेव आदि आते है। यह पौधे प्राकृतिक वातावरण में पाए जाते है। इनमे जायलम और फ्लोईम पाया जाता है। यह स्वंयपोषी होते है। इन पौधो में प्रजनन अंग पुष्प में पाए जाते है।
- पुष्प के चार चक्र होते है - (1) दलपुंज (2) बाह्य दलपुंज (३) जायांग (4) पुमंग
- ;पुष्प के जनन अंग जायांग और पुमंग होते है।
(1) एक वर्षीय - धान , गेंहू, सरसो आदि
(2) दो वर्षीय - गन्ना , चुकंदर , मूली , आलू , गाजर आदि
(3) बहु वर्षीय - आम , वरगद , नीम आदि
स्वभाव के आधार पर आवृतबीजी पौधे तीन प्रकार के होते है -
(1) शाक - मेंथी , पालक , गोबी आदि
(2) झाड़ी - गुड़हल , नींबू , मेहंदी , गुलाव , बेर आदि
(3) वृक्ष - आम , पीपल , नीम आदि
आवास के आधार पर आवृतबीजी पौधे पांच प्रकार के होते है -
(1) समोदभिद ( मिसोफाइटस ) -- आम , नीम , बरगद , पीपल आदि
(2) जलोदभिद (हाइड्रोफाइटस ) -- कमल , हाइड्रेला , मनीप्लांट
(3) मरोदभिद (जीरोफाइटस ) -- नागफनी , केट्टस
(4) लावणोदभिद ( हेलोफाइटस )-- नारियल , राइजोफोरा
(5) उपरजीवी (एपिफाइट्स ) -- यह अन्य पौधे के तने एवं शाखा पर उत्पन्न होते है।
पोषण के आधार पर आवृतबीजी पौधे दो प्रकार के होते है -
(1) स्वंयपोषी -- इनमे क्लोरोफिल पाया जाता है। तथा अपना भोजन स्वंय बनाते है स्वंयपाषी कहलाते है। जैसे - नीम , पीपल , सेब आदि
(2) विषमपोषी-- यह निम्न प्रकार के होते है -
- परजीवी -- रेफ्लेशिया , अमरबेल , विष्कम आदि
- मृतोपजीवी -- मोनोट्रोपा
- सहजीवी -- लाइकेन
- कीटभक्षी -- घटपर्णी , ड्रोसेरा , यूट्रीकुलेरिया
अनावृतबीजी ( जिंजोस्पर्म ) -- इन्हे नग्नबीजी पौधे भी कहा जाता जाता है। यह पौधे बहुवर्षीय होते है। इनमे जायलम और फ्लोइम पाए जाते है।
जैसे - साइकस , पायनस , जिंगो , इफेड्रा , विलियम सोनिया आदि।