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NON-CHORDATA

जन्तु जगत ---  जंतुजगत के अंतर्गत बहुकोशिकीय, यूकेरियोटिक  कोशिका वाले जीव आते है।  इनमे क्लोरोफिल नहीं पाया जाता है यह विषमपोषी होते है।  इनमें  कोशिका भित्ति का अभाव होता है यह भोजन को निगल कर खाते हैइनमे भोजन ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहता है।  जंतु  जल , थल , वायु तीनो जगह पाए जाते है।  जन्तुओ को कशेरुक दंड की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर दो उपजागतो में बांटा गया है।  (1) कशेरुकी (कोर्डेटा )  (2) अकशेरुकी ( नॉन - कोर्डेटा )


अकशेरुकी ( नॉन - कोर्डेटा ) --- इस संघ में ऐसे जन्तुओ को रखा गया है जिनके जीवन काल में कशेरुक दंड नहीं पाया जाता है इसके अंतर्गत आने वाले जीवो को 10 संघो में बांटा गया है।

(1)  पोरीफेरा -- इस संघ के अंतर्गत असंख्य छिद्र वाले जंतु आते है।  जिन्हे स्पंज कहते है।  यह जल में पाए जाते है।
उदा. -- स्पोंजिला , साइकेन , युस्पंजिला  , युलेक्टेला , ओस्केरेला  आदि।

(2)  प्रोटोजोआ --  इसका हम प्रॉटिस्टा जगत में अध्ययन कर चुके है।
 उदा. -- अमीबा , युग्लीना  पैरामीशियम

(3) एनीलिडा --  इस संघ के अंतर्गत खंड युक्त कृमि आते है।  यह जल में पाए जाते है।  इनमे बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है इनके उत्सर्जन तंत्रो को नेफ्रीडिया कहते है।  इनमे विकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है।
उदा. - जोक , केचुआ , नेरिस , आदि

(4) निडेरिया ( सीलेन्ट्रेटा ) -- इस संघ के अंतर्गत स्पंजों से अधिक विकसित जंतु आते है।  जो जल में पाए जाते है।  इनके शरीर में केंद्रीय गोहा ( गड्डा ) पायी जाती है।  इनके मुंख के चारो ओर स्पसर्क ( मूंछ ) पाए जाते है यह सबसे छोटा संघ है।
उदा. -  हाइड्रा , ओबेलिया , फायज़लिया , मूंगा , जेलीफिश  आदि

 (5) आर्थ्रोपोडा --- इस संघ के अंतर्गत समस्त कीट  आते है।  यह जन्तुओ में सबसे बड़ा संघ है।  इनमे खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।  इनका  बाह्य कंकाल काइटिन का बना होता है।
उदा. - केकड़ा , मकड़ी , मक्खी , खटमल , मच्छर टिड्डा , मधुमक्खी  आदि

(6) मोलस्का -- इस  संघ के अंतर्गत कैल्शियम कार्बोनेट का आवरण पाए जाते वाले जीव आते है।
उदा. - घोंगा (पायला ) , ऑक्टोपस ( स्रंगमीन), कटलफिश , समुंद्री खरगोश , सीपी आदि

(7) इकाइनोडर्मेटा -- इस संघ के अंतर्गत सीलोंग  युक्त जंतु पाए जाते है।  उदा. -  स्टारफिश , समुंद्री अर्चिन  , समुंद्री खीरा , कुकमेरिया आदि

(8) प्लेटीहेल्मंथीज-- इसके अंतर्गत फीते के समान चपटे कृमि आते है।

(9) निमेटोहेल्मंथीज -- इस संघ के अंतर्गत गोल कृमि आते है इनमे श्वसन तथा परिसंचरण तंत्र नहीं पाया जाता है।
उदा. - एक्सकैरिस

(10) हेमीकोर्डेटा --  इस संघ के अंतर्गत समुंद्र के किनारे सुरंग बनाकर रहने वाले  जंतु आते है।  इनमे खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है
उदा. - बेलेनोग्लोसस , सेफेलोडिस्कस

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PADAP JAGAT NOTES BY SHAILENDRA SIR

पादप जगत --- पादप जगत के अंर्तगत स्वंयपोषी जीव आते है।  ये भूमि एवं जल में पाए जाते है।  यह मुख्यतः 5 प्रकार के होते है- (1.) ब्रायोफाइटा   (2.) टेरीडोफाइट  (3.) शैवाल  (4.) आवृतबीजी पौधे   (5.) अनावृतबीजी पौधे ब्रायोफाइटा --- यह नम एवं छायादार स्थानों पर उगते है यह चट्टानों , दीवारों आदि स्थानों पर पाए जाते है। इन्हे  पादप जगत का उभयचर कहा जाता है इनमे संवहनीय ऊतक नहीं पाए जाते है। उदाहरण - रिक्सिया , मारकेंसिया , एंथोसेरोस , स्फेगनम टेरीडोफाइट -- यह भी नम एवं छायादार भूमि पर उगते है इनमे संवहनीय ऊतक पाए जाते है। उदहारण - मार्शिलिया , लाइकोपोडियम , रायनिया , सिलेजिनेला शैवाल ---  ;शैवालों के अध्ययन को फाइकोलॉजी कहा जाता है।  शैवाल विज्ञानं के पिता F. E. फ्रिश्च को कहा जाता है आधुनिक फाइकोलॉजी के पिता M.D.P. अायंगर को कहा जाता है।  शैवाल जलीय पादप है।  यह स्वस्छ एवं समुंद्री दोनों प्रकार के जल में  पाए जाते है।  यह सुकायत (थेलेकोईड ) होते है।  इनमे भोजन स्टार्च के रूप में एकत्रित रहता है।  शैवालों की...

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